परमाणु कगार पर दुनिया: क्या कूटनीति जीत पाएगी युद्ध से?

मानवता के कटघरे में युद्ध: इजरायल और ईरान के बीच बिखरती दुनिया
परमाणु कगार पर दुनिया: क्या कूटनीति जीत पाएगी युद्ध से?
मध्य पूर्व की धरती, जहां इतिहास की हर सदी ने खून की नदियां बहते देखी हैं, आज फिर युद्ध की लपटों में सुलग रही है। 13 जून 2025 को इजरायल के "ऑपरेशन राइजिंग लॉयन" ने ईरान के परमाणु ठिकानों(Nuclear bomb) पर बमबारी शुरू की, और जवाब में ईरान ने "ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस" के तहत तेल अवीव पर सौ से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें दाग दीं। इस युद्ध ने न केवल क्षेत्रीय शांति को तहस-नहस किया, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को भी डगमगाने पर मजबूर कर दिया। इस संकट के बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बयान गूंज रहा है—यूरोपीय देश इस संघर्ष में कुछ नहीं कर सकते, और अमेरिका ईरान के साथ परमाणु वार्ता के लिए तैयार है। लेकिन ईरान ने साफ शर्त रखी है: पहले इजरायली हमले रुकें, तभी बात होगी। यह कूटनीतिक जंग, युद्ध के मैदान से भी ज्यादा खतरनाक हो चली है। आंकड़ों और तथ्यों के साथ यह लेख इस युद्ध की गहराइयों, परमाणु वार्ता की उलझनों और वैश्विक प्रभावों को उजागर करता है।
इस संघर्ष की जड़ें दशकों पुरानी हैं। इजरायल और ईरान(Iran and Israel) के बीच शीतयुद्ध सा तनाव लंबे समय से चला आ रहा था, लेकिन 2025 ने इसे गर्म युद्ध में बदल दिया। इजरायल का दावा है कि ईरान 15 परमाणु हथियार बनाने के करीब पहुंच चुका था, जिसे रोकना उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अनिवार्य था। इसके जवाब में, ईरान ने इजरायल के प्रमुख शहरों पर मिसाइलें दागीं, जिसमें एक व्यक्ति की मौत और 70 से अधिक लोग घायल हुए। आंकड़े चौंकाने वाले हैं: युद्ध के पहले 10 दिनों में इजरायल के हमलों से ईरान में 650 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें 80 बच्चे और महिलाएं शामिल थे। वहीं, ईरान के हमलों से इजरायल में 30 नागरिकों की जान गई। दोनों देशों के बीच ड्रोन और मिसाइल हमले अब रोजमर्रा की बात हो चुके हैं। स्थिति तब और गंभीर हो गई, जब ईरान की एक मिसाइल इजरायल में अमेरिकी दूतावास के पास गिरी, जिसने इस युद्ध को वैश्विक स्तर पर ले जाने की आशंका को और बल दिया।
डोनाल्ड ट्रंप, जो जनवरी 2025 में दूसरी बार अमेरिका की सत्ता संभाल चुके हैं, इस संकट में केंद्र बिंदु बने हुए हैं। उनका दावा है कि इजरायली हमलों की जानकारी उन्हें पहले से थी, और उन्होंने ईरान को परमाणु वार्ता के लिए 60 दिन का अल्टीमेटम दिया था। ट्रंप ने 18 जून 2025 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ईरान के पास परमाणु बम बनाने की पूरी सामग्री है; बस सुप्रीम लीडर के हस्ताक्षर की देरी है। उनकी रणनीति दोधारी तलवार सी है। एक ओर, वे इजरायल को सैन्य सहायता और मिसाइल रक्षा प्रणालियों के जरिए समर्थन दे रहे हैं; दूसरी ओर, वे ईरान को कूटनीति की मेज पर लाने का दबाव बना रहे हैं। ट्रंप ने अगले 10 दिनों में यह फैसला लेने की बात कही है कि क्या अमेरिका इस युद्ध में सीधे हस्तक्षेप करेगा। उनका यह बयान कि "यूरोप इस मामले में बेकार है" न केवल यूरोपीय देशों की कूटनीतिक कमजोरी को उजागर करता है, बल्कि अमेरिका की एकतरफा नेतृत्व की महत्वाकांक्षा को भी रेखांकित करता है।
ईरान, हालांकि, आसानी से झुकने वाला नहीं है। राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने अमेरिका पर इजरायल की आक्रामकता को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने साफ शब्दों में कहा, "हम आत्मसमर्पण नहीं करेंगे; अगर अमेरिका सैन्य हस्तक्षेप करता है, तो उसे ऐसी कीमत चुकानी पड़ेगी, जो वह कभी नहीं भूल पाएगा।" ईरान ने परमाणु वार्ता के लिए इजरायली हमले रुकने की शर्त रखी है। 20 जून 2025 को ईरान ने यूरोपीय संघ के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रारंभिक बातचीत शुरू की, लेकिन विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने दो टूक कहा कि जब तक इजरायल हमले बंद नहीं करता, ईरान अपने सैन्य अभियान को और तेज करेगा। यह गतिरोध दर्शाता है कि परमाणु वार्ता की राह कांटों से भरी है।
यूरोप की भूमिका इस संकट में सीमित रही है। ट्रंप के तंज के बावजूद, जी7 देशों ने 15 जून 2025 को कनाडा में हुए शिखर सम्मेलन में इजरायल का समर्थन किया और ईरान पर दबाव डाला। लेकिन यूरोप की कूटनीतिक पहलें नाकाम रही हैं, क्योंकि ईरान ने अमेरिका के साथ सीधी बातचीत को प्राथमिकता दी। दूसरी ओर, रूस और चीन ने ईरान का खुला समर्थन किया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ट्रंप से फोन पर बात की और इजरायली हमलों की निंदा की। खबरें हैं कि चीन ईरान को ड्रोन और संवेदनशील तकनीक की आपूर्ति कर रहा है, जो इस युद्ध को और जटिल बना सकता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठकें भी बेनतीजा रही हैं, क्योंकि स्थायी सदस्यों के बीच मतभेद उभरकर सामने आए।
इस युद्ध का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ना शुरू हो चुका है। तेल की कीमतें पिछले एक सप्ताह में 15% बढ़ चुकी हैं, क्योंकि होर्मुज जलडमरूमध्य में व्यापारिक जहाजों पर खतरा मंडरा रहा है। यदि यह युद्ध लंबा खिंचा या परमाणु स्तर तक पहुंचा, तो वैश्विक मंदी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षा और इजरायल की आक्रामक नीति इस क्षेत्र को दशकों पीछे धकेल सकती हैं। ट्रंप की 10-दिवसीय समयसीमा एक जोखिम भरा दांव है, जो या तो कूटनीति की जीत बन सकता है या फिर वैश्विक युद्ध का आगाज।
इस संकट ने दुनिया को दोराहे पर ला खड़ा किया है। एक ओर, कूटनीति की संभावना अभी बाकी है, जहां अमेरिका और ईरान आपसी हितों के आधार पर समझौता कर सकते हैं। दूसरी ओर, सैन्य टकराव का खतरा मंडरा रहा है, जो न केवल मध्य पूर्व, बल्कि पूरी दुनिया को अस्थिर कर सकता है। आंकड़े चीख-चीखकर बता रहे हैं कि अब तक सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, और हजारों बेघर हो चुके हैं। यह युद्ध न तो इजरायल की जीत है, न ईरान की; यह मानवता की हार है।
जैसे ही मध्य पूर्व की रातें मिसाइलों की रोशनी से जगमगाती हैं, विश्व समुदाय सांस थामे इंतजार कर रहा है। क्या यह युद्ध परमाणु त्रासदी का रूप लेगा, या कूटनीति की रोशनी इस अंधेरे को चीरेगी? समय तेजी से बीत रहा है, और दुनिया के पास जवाब देने के लिए ज्यादा वक्त नहीं बचा। यह युद्ध केवल मध्य पूर्व का नहीं, बल्कि पूरी मानव सभ्यता का भविष्य तय करेगा। क्या हम इतिहास से सबक लेंगे, या फिर एक और अध्याय खून से लिखा जाएगा?
प्रो. आरके जैन “अरिजीत