United Nations-संयुक्त राष्ट्र संघ के अस्तित्व को ललकारता रूस-यूक्रेन तथा इजरायल-हमास युद्ध।
संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका नगण्
संजीव ठाकुर, चिंतक
रूस यूक्रेन युद्ध के सैकड़ों दिन गुजर जाने के बाद अरबों रुपए के माल की हानि और लाखों लोग बेघर तथा जान गवाने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ में नेपथ्य में अपने अस्तित्व की तलाश में घूमता नजर आ रहा है। अमेरिका तथा यूरोपीय देश रूस के खिलाफ खुलकर धन तथा सामरिक अस्त्र शस्त्र लगातार यूक्रेन को प्रदान कर रहे हैं दूसरी तरफ इन्हीं बाहुबली देशों के इशारे पर यूएनओ रूस पर नाना प्रकार के प्रतिबंध लगा चुका है l g20 और G7 की कई बैठकें हो चुकी है और लगातार यूरोपीय देश रूस पर प्रतिबंध पर प्रतिबंध लगाते जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ना तो रूस यूक्रेन युद्ध और नाही इजराइल पलेस्टाइन युद्ध में कुछ कारगर भूमिका निभा सका है। इजराइल लगातार हमास और फिलिस्तीन पर आक्रमण कर हजारों लोगों को मौत के घाट उतार चुका है पर संयुक्त राष्ट्र संघ का मौन उसके अस्तित्व पर संदेह पैदा करता है। संयुक्त राष्ट्र संघ अब अस्तित्वहीन हो चुका है। अभी भी अमेरिका सहित नेटो देश यू,एन,ओ,को अपने स्वार्थ के हिसाब से संचालित करते आ रहे हैँ।रूस यूक्रेन युद्ध में युद्ध रोकने यू,एन,ओ, रूस के सामने गिड़गिड़ा कर अपील करता रहा, पर रूस के कान में जूं तक नहीं रेंगी उल्टा हमले और तेज कर दिए।यू,एन,ओ, की हामियत प्रायः न्यून होती जा रही है।
वैश्विक शांति सद्भावना और सौहार्द के लिए वैश्विक देशों ने एक मत हो कर परमाणु अप्रसार संधि पर 1970 में लगभग विश्व के सारे देशों ने अपनी मुहर लगाई थी विश्व के 191 देशों ने अपनी सहमति जताकर परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए थेl यह इस परमाणु संधि का मूल् आदर्श यही था कि मानव जाति के लिए हर संभव परमाणु हथियारों और इस खतरनाक तकनीक के प्रचार प्रसार को रोकना था जिन देशों के पास परमाणु हथियार नहीं थे वह भी इस संधि में शामिल हो गए थे पर परमाणु हथियार संपन्न देश भी इस बात से सहमत हैं कि परमाणु हथियार बनाने एवं इसके उपयोग पर प्रभावी नियंत्रण लगे द्वितीय युद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर अणु, परमाणु बमों का भयानक परिणाम जापान में पूरी दुनिया के लोग देख चुके थे ,अनुभव कर चुके थे ।जापान इसके दुष्परिणाम अभी तक झेल रहा हैl परमाणु हथियारों का उपयोग मानव जाति के खिलाफ ना किया जाए इसके लिए परमाणु अप्रसार संधि की कवायत यूनाइटेड नेशंस ऑर्गेनाइजेशन की गई थीl अब जब संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव रूस के राष्ट्रपति पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से भेंट कर रूस यूक्रेन युद्ध को रोकने की मध्यस्थता करने रूस के दौरे पर जाएंगे, पर संयुक्त राष्ट्र संघ शांति स्थापना के देश में कितना सफल होगा यह तो वक्त ही बताएगा । 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के बाद अनेक देश परमाणु हथियार संपन्न बन चुके हैं ।
परमाणु तथा हाइड्रोजन बमों की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई हैl उल्लेखनीय है कि इन संधियों को युद्ध से बचने और शांति स्थापित करने के प्रयास के लिए वैश्विक स्तर पर निर्मित किया गया था ।अब रूस तथा यूक्रेन युद्ध में उसकी कहीं भी कोई भूमिका दिखाई नहीं देती ,सभी संस्थाएं निष्क्रिय प्रतीत होती हैंl कमजोर और छोटे देश यूक्रेन पर पिछले 1 वर्ष से ज्यादा समय से रूस लगातार आक्रमण कर उसके शहरों को तबाह कर रहा है, संयुक्त राष्ट्र संघ सहित विश्व के सारे देश हाथ में हाथ धरे बैठे इस भीषण युद्ध को सिर्फ देख रहे हैं। इसे रोकने की किसी ने पहल तक नहीं की है।ऐसे में इन संधियों की प्रासंगिकता भी लगभग शून्य हो चुकी हैl यूक्रेन को अपनी उस बड़ी गलती का एहसास हो रहा है जो 1994 में उसने बुडापेस्ट समझौते के तहत परमाणु हथियार नहीं बनाने के लिए वचनबद्ध होकर हस्ताक्षर करके की थीl
अमेरिका यूरोपीय देश तथा रूस ने यूक्रेन को परमाणु हथियारों से दूर रखने की नीति पर काम किया था, जिसके फलस्वरूप यूक्रेन ने अपने पास मौजूद तमाम परमाणु हथियारों को इस बुडापेस्ट समझौते के तहत 1996 में नष्ट कर दिए थे। यूक्रेन रूस तथा अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव में 1996 में जेनेवा सम्मेलन में व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि के तहत हस्ताक्षर किए थे। भारत ने इस परमाणु संधि पर हस्ताक्षर करने से साफ इंकार कर दिया था और भारत सरकार की देखा देखी पाकिस्तान ने भी हस्ताक्षर नहीं किए थे। उस समय की यह नीति अत्यंत भेदभाव पूर्ण थी जिसके परिणाम अब साफ नजर आ रहे हैं। यूक्रेन के पास यदि आज परमाणु हथियार होते तो रूस इस तरह उस पर ताबड़तोड़ हमले न करता और रूस ने इस युद्ध में परमाणु हथियारों की उपयोग की धमकी तक दे डाली है यह अलग मुद्दा है कि रूस परमाणु हथियारों का कब और कैसे इस्तेमाल करेगा।
भारत ने पहला परमाणु परीक्षण प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 1974 में राजस्थान के पोखरण में कराया था और तब से दुनिया ने समझ लिया है कि भारत भी एक परमाणु संपन्न देश बन चुका है एवं इस दिशा में 1998 में अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में फिर से परमाणु परीक्षण कर इस पर मुहर लगा दी गई थी । भारत ने परमाणु हथियार बनाने के साथ-साथ प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने एक नीति विश्व के सामने स्पष्ट कर दी थी कि परमाणु हथियार केवल निरोध के लिए है और भारत केवल प्रतिशोध की नीति को अपनायगा इसका साफ साफ यह मतलब है कि भारत पहले परमाणु हमला नहीं करेगा और यदि कोई देश उस पर हमला करता है तो वह परमाणु हथियारों का उपयोग करने से पीछे नहीं हटेगा।इधर परमाणु संपन्न देशों की महत्वाकांक्षाओं ने में नई करवट ली है। उत्तर कोरिया के सनकी सम्राट किम जोंग ने अपने परमाणु हथियारों से अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान को समूचा नष्ट करने की धमकी तक दे डाली है और अमेरिका उत्तर कोरिया को पूरा नष्ट करने की ठान चुका है। इसी तरह चीन ने समुद्री निगरानी करने के बहाने अपनी परमाणु पनडुब्बियों को समुद्र में उतारने का फैसला भी लिया है।
परमाणु हथियारों के उपयोग का खतरा अभी भी वैश्विक जगत में छाया हुआ है क्योंकि परमाणु अप्रसार संधि में अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, भारत, पाकिस्तान, इजरायल और उत्तर कोरिया ने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया है। फल स्वरूप परमाणु हथियारों के उपयोग की आशंका बनी हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ एक कमजोर मध्यस्थ की तरह सबकी तरफ ताक रहा है। वर्तमान समय में अमेरिका के पास 6800, फ्रांस के पास 300 चीन के पास 260 ब्रिटेन के पास 215 पाकिस्तान के पास 170 और भारत के पास 172 इजराइल के पास 80 और उत्तर कोरिया के पास 10 परमाणु हथियार है। एक भी देश यदि परमाणु हथियार इस्तेमाल करता है तो पूरा विश्व और धरती तहस-नहस होने की दिशा में अग्रसर हो सकती है। विश्व बहुत गहरे संकट में है रूस यूक्रेन युद्ध यदि समाप्त नहीं हुआ तो विश्व युद्ध की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है