HARYANA: भाजपा ने अपनी कमजोरी को ताकत में बदला .
हरियाणा: भाजपा ने अपनी कमजोरी को ताकत में बदला . ,
जेजेपी का अस्तित्व खत्म ,
सैनी के मंत्री, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और चौटाला परिवार के सदस्यों समेत कई दिग्गज हारे
हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी भले ही पूर्ण बहुमत के साथ रिकॉर्ड तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रही हो, लेकिन उसके 10 में से 8 मंत्री चुनाव हार गए. वहीं, कांग्रेस ने निर्दलीय चुनाव लड़े पार्टी के बाग़ियों की बग़ावत से खासा नुकसान झेला है.
by-राजकुमार अग्रवाल
चंडीगढ़:भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में सबको चौंका दिया, लोकसभा चुनावों से बेहतर प्रदर्शन करते हुए जिसमें इसने 44 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की थी. मंगलवार को इसने 48 सीटें जीतीं, हालांकि इसका वोट शेयर लोकसभा चुनावों में 46 प्रतिशत से घटकर 39.94 प्रतिशत रह गया.भाजपा नॉन-जाट मतदाताओं को एकजुट करने में सफल रही, साथ ही जाटों के गढ़ में 9 नई सीटें भी जीतीं.हरियाणा में बीजेपी के खिलाफ खासकर मनोहर लाल खट्टर सरकार के खिलाफ जो विरोध जन मानस मे था यही नहीं जिस बीजेपी कार्यकताओं के गाँव तक या किसी भी पंचायती कार्यक्रम में शामिल होने पर पाबंदी लगा देने के बावजूद हरियाणा में बीजेपी की जीत बहुत कुछ तथ्य अपने अंदर समेटे हुए है। हरियाणा में बीजेपी की जीत ने किसान आंदोलन ,बेरोजगारी ,खिलाड़ीयो के यौन उत्पीड़न ,हरियाणा की पंचायतों के अधिकार छीने जाना ,डिजिटल हरियाणा के नाम पर जनता को उलझा कर रखना ,विधानसभा में श्वेत पत्र जारी करना ,भर्ती घोटाले ,परीक्षा नक़ल सब के सब मुद्दे धराशाही कर दिए साथ ही बीजेपी की इस जीत ने यह भी जता दिया की जनता की अहमियत बीजेपी की राजनीति के सामने दो कोड़ी की है।
हरियाणा में भाजपा के रिकॉर्ड तीसरी बार सत्ता में आने के बावजूद इसके और अन्य दलों के ऐसे दिग्गज नेताओं की लंबी सूची है जिन्होंने चुनाव में हार का स्वाद चखा है. इन नेताओं भाजपा सरकार के 8 मंत्रियों के नाम भी शामिल हैं.
उदाहरण के लिए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष उदय भान पलवल जिले की होडल विधानसभा सीट से 2,500 मतों के अंतर से चुनाव हार गए. यह इस सीट से उनकी लगातार दूसरी हार है. होडल अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है.
इतने हाई-प्रोफाइल उम्मीदवार की हार से पता चलता है कि आखिर कांग्रेस के अंदर क्या गलत चल रहा था.
2022 में पार्टी की प्रमुख दलित चेहरा कुमारी शैलजा से प्रदेश कांग्रेस के नेतृत्व की बागडोर लेते हुए उदयभान को सौंपी गई थी. भान को पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के प्रतिनिधि के रूप में देखा गया था. इसने हुड्डा और शैलजा खेमों के बीच संघर्ष में बढ़ोतरी की और अंततः पार्टी की चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया.
राजनीतिक विश्लेषक कुशल पाल ने कहा कि भान की हार के पीछे एक संदेश यह है कि चुनाव अति आत्मविश्वास के साथ नहीं लड़े जा सकते.
उन्होंने कहा, ‘मैं व्यक्तिगत रूप से कांग्रेस में टिकट की चाहत रखने वाले ऐसे कई लोगों को जानता हूं जो पिछले कई सालों से जमीन पर काम कर रहे थे. लेकिन उनके टिकट कटने के बाद भान या अन्य वरिष्ठ नेताओं ने उनमें से किसी से भी संपर्क करके उन्हें शांत नहीं किया.’
कांग्रेस को एक और बड़े झटके का सामना वरिष्ठ कांग्रेस नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे चौधरी बृजेंद्र सिंह को उनके परिवार की परंपरागत सीट उचाना कलां से मात्र 32 वोटों से मिली हार के चलते करना पड़ा.
पाल ने कहा कि बृजेंद्र सिंह इसलिए चुनाव नहीं हारे क्योंकि भाजपा उम्मीदवार राजनीतिक रूप से मजबूत थे, बल्कि इसलिए हारे क्योंकि पार्टी ने बागी नेता वीरेंद्र घोघड़िया को मनाने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए. वीरेंद्र घोघड़िया को 31,000 से अधिक वोट मिले, जो बृजेंद्र सिंह की हार के अंतर से बहुत ज्यादा थे.
गोहाना जाट बहुल सोनीपत जिले की एक और सीट थी, जहां कांग्रेस से बगावत करके चुनाव लड़ने वाले हर्ष छिकारा को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में 14,000 से अधिक वोट मिले, जो कांग्रेस उम्मीदवार जगबीर मलिक की हार के अंतर से चार हजार अधिक थे.
इनेलो और जेजेपी के दिग्गज भी हारे
हरियाणा के क्षेत्रीय दल इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और उससे अलग हुए जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) – जो चौटाला परिवार के नियंत्रण में है – को विभिन्न राजनीतिक कारणों से चुनावी रूप से अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद नहीं थी. लेकिन इन दलों के दिग्गजों को मिली हार ने उन्हें चौंका दिया.हरियाणा में पिछले 5 वर्षों से बीजेपी की सहयोगी रही जन नायक जनता पार्टी को इस बार हरियाणा विधान सभा 2024 के आम चुनाव में ना केवल हार का मुँह देखना पड़ा बल्कि इसका अस्तित्व की समाप्त हो गया जेजेपी प्रमुख दुष्यंत चौटाला को करारी हार का सामना करना पड़ा यही नहीं किसान आंदोलन और कोरोना में शराब घोटाले में नाम आने के बाद भी सत्ता में बीजेपी का साथ देने के चलते हरियाणा की जनता दुष्यंत चौटाला से इस कदर नाराज थी की गाँव गाँव में विरोध का सामना करना पड़ा कई गावों में तो दुष्यंत के घुसने पर भी पाबंदी लगा दी गई थी .,
पूर्व उपप्रधानमंत्री और प्रमुख जाट नेता चौधरी देवीलाल के वंश के चौटाला परिवार के आठ सदस्य विभिन्न सीटों से चुनावी मैदान में थे. दो को छोड़कर बाकी सभी चुनाव हार गए.
इनमें से एक नाम इनेलो के प्रमुख नेता अभय चौटाला का भी है, जो सिरसा जिले के अपने गढ़ ऐलनाबाद से 15,000 वोटों के अंतर से हार गए, जबकि वे 2010 से चार बार इस सीट पर जीत चुके थे.
चौटाला ने जाट-दलित गठबंधन खड़ा करने के लिए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन किया था, जो जमीन पर काम नहीं आया.
अभय चौटाला के अलावा परिवार की एक अन्य सदस्य सुनैना चौटाला भी फतेहाबाद से इनेलो उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ी थीं, लेकिन हार गईं.
चौटाला परिवार के बीच झगड़े के बाद 2018 में सामने आए जेजेपी में पार्टी के मुख्य चेहरे और पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को जींद जिले के उचाना कलां के अपने गढ़ में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. वह पांचवें स्थान पर रहे, उनकी हार का अंतर 40,000 वोटों से अधिक था.
उनके छोटे भाई दिग्विजय चौटाला, जो सिरसा जिले के डबवाली से जेजेपी उम्मीदवार के रूप में लड़े थे, 20,000 से अधिक मतों से चुनाव हार गए.
कुल मिलाकर जेजेपी को कुल वोट का 1% से भी कम वोट मिला, जबकि 2019 के विधानसभा चुनाव में उसे 15% वोट मिले थे.
इनेलो और जेजेपी की शर्मनाक हार का मुख्य कारण इसके कोर वोटबैंक रहे किसान वर्ग, विशेष तौर पर जाट, का इससे विमुख होना बताया जा रहा है.
सैनी के अधिकांश मंत्री हारे, स्पीकर भी अपनी पारंपरिक सीट नहीं बचा सके
जब एक दबंग और सबसे बड़ी आबादी वाली जाति मजबूती से आपके खिलाफ खड़ी हो तब आप चुनाव कैसे जीतेंगे? सबसे पहले समूह को अपने प्रतिद्वंद्वियों में उलझा दीजिए और बाकी को अपने पक्ष में मजबूत कर लीजिए. भाजपा ने अपनी कमजोर कड़ियों की अनदेखी की और अपनी मजबूत कड़ियों — ऊंची जातियों, पंजाबियों और अब ओबीसी — पर पूरी ताकत लगाई. इसलिए, पंजाबी मनोहर लाल खट्टर को हटाकर ओबीसी नायब सिंह सैनी को गद्दी सौंपना निर्णायक रहा. दबंग समूहों से बाकी सब डरते हैं और उन्हें नापसंद करते हैं, यह एक अकाट्य बुद्धिमानी है. हरियाणा की एक महत्वपूर्ण बात यह है कि जाट हालांकि अपने लिए ओबीसी के दर्जे की अक्सर मांग करते रहते हैं, लेकिन वह यहां हर तरह से सबसे ऊंची जाति हैं. ‘मनुस्मृति’ को भूल जाइए, जाट समुदाय की हैसियत वैसी ही है जैसी बिहार में 22 फीसदी वाली ब्राह्मण जाति की है. बाकी जातियां उससे नाराज रहती हैं. हरियाणा में इस समीकरण को दुरुस्त करके भाजपा ने अपनी कमजोरी को ताकत में बदल लिया.भाजपा की जीत ने भले ही सबको चौंका दिया हो लेकिन मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की सरकार के अधिकांश मंत्री चुनाव हार गए.,इस वर्ष मार्च में भाजपा द्वारा अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को हटाने के बाद गठित सैनी मंत्रिमंडल में कुल 13 मंत्री थे. तीन मंत्री – सीमा त्रिखा, बनवारी लाल और विशंभर सिंह – को पार्टी ने टिकट नहीं दिया था. बाकी दस मंत्रियों में से 8 चुनाव हार गए.
इसके अलावा, भाजपा के हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता भी पंचकूला की अपनी पारंपरिक सीट नहीं बचा सके.
राज्य के कृषि मंत्री कंवर पाल भी उन हाई-प्रोफाइल उम्मीदवारों में शामिल हैं जो चुनाव हार गए. वे यमुनानगर जिले के जगाधरी से कांग्रेस के अकरम खान से 6,800 वोटों के अंतर से हार गए.
यहां आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार आदर्श पाल सिंह, जिन्हें 43,000 से अधिक वोट मिले, की मौजूदगी ने भाजपा के मंत्री का खेल बिगाड़ दिया.
मुस्लिम बहुल नूंह में खेल राज्य मंत्री संजय सिंह तीसरे स्थान पर रहे और 75,900 मतों के भारी अंतर से हार गए.
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री कमल गुप्ता हिसार में भाजपा की बागी और निर्दलीय उम्मीदवार सावित्री जिंदल से हार गए.
सैनी मंत्रिमंडल के हारने वाले अन्य उल्लेखनीय नाम हैं – लोहारू से वित्त मंत्री जयप्रकाश दलाल, ऊर्जा मंत्री रणजीत सिंह (जिन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था), थानेसर से स्थानीय निकाय मंत्री सुभाष सुधा, अंबाला शहर से परिवहन मंत्री असीम गोयल और नांगल से सिंचाई एवं जल संसाधन मंत्री अभय सिंह यादव शामिल हैं.